Rashmirathi is a poem by Ram Dhari Singh Dinkar which I came across while watching videos from the movie Gulaal. Piyush Mishra recites than piece in a manner that leaves you in complete awe. The poem in itslef is a marvel.
Piyush Mishra's recitation:
सौभाग्य न सब दिन होता है, देखें आगे क्या होता है
मैत्री की राह दिखाने को, सब को सुमार्ग पर लाने को
दुर्योधन को समझाने को, भीषण विध्वंस बचाने को
भगवान हस्तिनापुर आए, पांडव का संदेशा लाये
दो न्याय अगर तो आधा दो, पर इसमें भी यदि बाधा हो
तो दे दो केवल पाँच ग्राम, रखो अपनी धरती तमाम
Piyush Mishra's recitation:
"As per the original agreement Pandavas were to get
back their kingdom when they returned from 14 years exile in the forests. But
Duryodhan refused to oblige and part with the land. Lord Krishna came to
Duryodhan to persuade him to see the reason and give Pandavas at least five
villages where they could live peacefully. Refusal of Duryodhan ultimately
became the cause of the mother of all war, the unparalleled war of Mahabharat.
This excerpt describes the meeting of Lord Krishna with Duryodhan that ended
with Krishna announcing the inevitability of war that Duryodhan would surely
lose. Dinkars narration is superb and captures the drama beautifully. Meter is
perfect and language , as always, very pure. On the eve of Mahabharata War
Kunti, went to Karna and requested him to diffuse the war by leaving Duryodhana
and coming over to Pandavas side as he was her first born and it was only
appropriate for him to fight from the side of Pandavas. A part of Karnas reply
in words of Ramdhari Singh Dinkar is given below. Karna says that even as he
foresees a defeat for Kauravas, he must fight from the side of Duryodhana. He
says that the war is quite pointless yet it is a destiny that has to be
fulfilled. - Rajiv K. Saxena"
Here is the full text of the poem:
वर्षों तक वन में घूम घूम, बाधा विघ्नों को चूम चूम
सह धूप घाम पानी पत्थर, पांडव आये कुछ और निखर
सौभाग्य न सब दिन होता है, देखें आगे क्या होता है
मैत्री की राह दिखाने को, सब को सुमार्ग पर लाने को
दुर्योधन को समझाने को, भीषण विध्वंस बचाने को
भगवान हस्तिनापुर आए, पांडव का संदेशा लाये
दो न्याय अगर तो आधा दो, पर इसमें भी यदि बाधा हो
तो दे दो केवल पाँच ग्राम, रखो अपनी धरती तमाम
हम वहीँ खुशी से खायेंगे, परिजन पे असी ना उठाएंगे
दुर्योधन वह भी दे ना सका, आशीष समाज की न ले सका
उलटे हरि को बाँधने चला, जो था असाध्य साधने चला
जब नाश मनुज पर छाता है, पहले विवेक मर जाता है
हरि ने भीषण हुँकार किया, अपना स्वरूप विस्तार किया
डगमग डगमग दिग्गज डोले, भगवान कुपित हो कर बोले
जंजीर बढ़ा अब साध मुझे, हां हां दुर्योधन बाँध मुझे
ये देख गगन मुझमे लय है, ये देख पवन मुझमे लय है
मुझमे विलीन झनकार सकल, मुझमे लय है संसार सकल
अमरत्व फूलता है मुझमे, संहार झूलता है मुझमे
भूतल अटल पाताल देख, गत और अनागत काल देख
ये देख जगत का आदि सृजन, ये देख महाभारत का रन
मृतकों से पटी हुई भू है, पहचान कहाँ इसमें तू है
अंबर का कुंतल जाल देख, पद के नीचे पाताल देख
मुट्ठी में तीनो काल देख, मेरा स्वरूप विकराल देख
सब जन्म मुझी से पाते हैं, फिर लौट मुझी में आते हैं
जिह्वा से काढती ज्वाला सघन, साँसों से पाता जन्म पवन
पर जाती मेरी दृष्टि जिधर, हंसने लगती है सृष्टि उधर
मैं जभी मूंदता हूँ लोचन, छा जाता चारो और मरण
बाँधने मुझे तू आया है, जंजीर बड़ी क्या लाया है
यदि मुझे बांधना चाहे मन, पहले तू बाँध अनंत गगन
सूने को साध ना सकता है, वो मुझे बाँध कब सकता है
हित वचन नहीं तुने माना, मैत्री का मूल्य न पहचाना
तो ले अब मैं भी जाता हूँ, अंतिम संकल्प सुनाता हूँ
याचना नहीं अब रण होगा, जीवन जय या की मरण होगा
टकरायेंगे नक्षत्र निखर, बरसेगी भू पर वह्नी प्रखर
फन शेषनाग का डोलेगा, विकराल काल मुंह खोलेगा
दुर्योधन रण ऐसा होगा, फिर कभी नहीं जैसा होगा
भाई पर भाई टूटेंगे, विष बाण बूँद से छूटेंगे
सौभाग्य मनुज के फूटेंगे, वायस शृगाल सुख लूटेंगे
आखिर तू भूशायी होगा, हिंसा का पर्दायी होगा
थी सभा सन्न, सब लोग डरे, चुप थे या थे बेहोश पड़े
केवल दो नर न अघाते थे, धृतराष्ट्र विदुर सुख पाते थे
कर जोड़ खरे प्रमुदित निर्भय, दोनों पुकारते थे जय, जय .
रामधारि सिंह दिनकर
'रश्मीरथी'
Oh this was brilliant!!
ReplyDeleteIsn't it?
ReplyDeleteThis was the piece I was murmuring all through the day, last Sunday, when you said why are you talking to yourself.
I'll recite it for you, full-fledged, soon. :)